वांछित मन्त्र चुनें

ऋ॒तावा॒ यस्य॒ रोद॑सी॒ दक्षं॒ सच॑न्त ऊ॒तयः॑। ह॒विष्म॑न्त॒स्तमी॑ळते॒ तं स॑नि॒ष्यन्तोऽव॑से॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtāvā yasya rodasī dakṣaṁ sacanta ūtayaḥ | haviṣmantas tam īḻate taṁ saniṣyanto vase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तऽवा॑। यस्य॑। रोद॑सी॒ इति॑। दक्ष॑म्। सच॑न्ते। ऊ॒तयः॑। ह॒विष्म॑न्तः। तम्। ई॒ळ॒ते॒। तम्। स॒नि॒ष्यन्तः॑। अव॑से॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:13» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! (ऋतावा) सत्य की प्रार्थना करनेवाले आप (यस्य) जिसके (दक्षम्) पराक्रम वा चतुराई और (ऊतयः) रक्षा करनेवाले गुण (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (सचन्ते) सम्बद्ध करते अर्थात् उनमें व्याप्त होते हैं (तम्) उसके (हविष्मन्तः) प्रशंसा करने योग्य दानयुक्त जन सम्बन्धी होते हैं (तम्) उसकी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (सनिष्यन्तः) सेवन करनेवाले लोग (ईळते) प्रशंसा करते हैं, उसीकी प्रशंसा करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसकी कीर्त्ति आकाश और पृथिवी में व्याप्त, जिसके न्याय से प्रशस्त रक्षा आदि कर्म होते हैं, उसी विद्वान् सभापति की रक्षा आदि के लिये तुम आश्रय करो ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् ऋतावा भवान् यस्य दक्षमूतयश्च रोदसी सचन्ते तं हविष्मन्तः सचन्ते तमवसे सनिष्यन्तः ईळते तमेव प्रशंसतु ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतावा) य ऋतं सत्यं वनुते याचते सः (यस्य) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (दक्षम्) बलं चातुर्य्यम् (सचन्ते) सम्बध्नन्ति (ऊतयः) रक्षका गुणाः (हविष्मन्तः) प्रशस्तानि हवींषि दानानि विद्यन्ते येषु ते (तम्) (ईळते) प्रशंसन्ति (तम्) (सनिष्यन्तः) सेवनं करिष्यमाणाः (अवसे) रक्षणाद्याय ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यस्य कीर्त्तिर्द्यावापृथिव्योर्व्याप्ता यस्य न्यायेन रक्षणादीनि कर्माणि प्रशंसितानि सन्ति तमेव विद्वांसं सभापतिं रक्षणाद्यायाश्रयत ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्याची कीर्ती आकाश व पृथ्वीवर व्याप्त आहे ज्याच्या न्यायामुळे रक्षण इत्यादी प्रशंसनीय कार्य घडतात त्याच विद्वान सभापतीचा रक्षण इत्यादीसाठी आश्रय घ्या. ॥ २ ॥